महादेव कब करते हैं कैलाश पर्वत पर नृत्य जानिए

सोम प्रदोष, यहां जानें शुभ मुहूर्त, पूजन व‍िध‍ि-व्रत कथा और महत्‍व

बता रहे हैं नृसिंह पीठाधीश्वर स्वामी रसिक महाराज नृसिंह वाटिका आश्रम रायवाला हरिद्वार उत्तराखंड

सोम प्रदोष आज, व्रत पूजन व‍िध‍ि, कथा और महत्‍व

सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का व‍िशेष महत्‍व माना गया है। प्रत्‍येक माह की त्रयोदशी तिथि में सायंकाल को प्रदोष काल कहा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं।

ऐसे में जो भी जातक यह व्रत करते हैं भोलेनाथ की कृपा से उनकी सभी मनोवांछ‍ित कामनाओं की पूर्ति होती है। सप्‍ताह के सातों द‍िन पड़ने वाले प्रदोष व्रत का नाम और महत्‍व दोनों ही अलग-अलग हैं।

महादेव इसी तरह सोमवार के द‍िन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत कहते हैं। साथ ही मान्‍यता है क‍ि इस द‍िन व्रत और भोलेनाथ की पूजा करने वाले जातकों के सभी पाप भी नष्‍ट हो जाते हैं।

सोम प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त और पूजन व‍िध‍ि

सोम प्रदोष व्रत 7 जून सुबह 08 बजकर 47 मिनट से प्रारंभ होगा। पूजन का शुभ मुहूर्त 07 जून को शाम 07 बजकर 17 मिनट से 09 बजकर 18 मिनट तक रहेगा। सोम प्रदोष व्रत के द‍िन सुबह-सवेरे स्नान आदि से निवृत होकर हल्के लाल या गुलाबी रंग का वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा घर की सफाई करके रेशमी कपड़ों से एक मंडप बनाएं। हल्दी से स्वस्तिक बनाकर चांदी या तांबे के कलश में शुद्ध शहद की एक धारा शिवलिंग को अर्पित करें। उसके बाद शुद्ध जल की धारा से अभिषेक करें। इसके बाद ‘ऊं सर्वसिद्धि प्रदाये नमः’ मंत्र का 108 बार जप करें। इसके बाद प्रदोष व्रत कथा, शिव चालीसा, महामृत्युंजय मंत्र और आरती करें। साथ ही पूजा के समापन पर भोलेनाथ से क्षमा प्रार्थना जरूर कर लें।

ऐसी है सोम प्रदोष व्रत की पौराण‍िक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए इधर-उधर भटक रहा था।

तब भोलेनाथ ने की ऐसी कृपा

राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। तभी एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।

ब्राह्मणी पर ऐसी हुई श‍िवजी की कृपा

ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं। अत: सोम प्रदोष का व्रत करने वाले सभी भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए।

सोम प्रदोष व्रत का ऐसा है महत्व

सोम प्रदोष के द‍िन भोलेनाथ के अभिषेक रुद्राभिषेक और श्रृंगार का व‍िशेष महत्व है। इस द‍िन सच्‍चे मन से भोलेनाथ की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। लड़का या लड़की की शादी-विवाह की अड़चनें दूर होती है। संतान की इच्छा रखने वाले लोगों को इस दिन पंचगव्य से महादेव का अभिषेक करना चाहिए। वहीं ऐसे जातक ज‍िन्‍हें लक्ष्मी प्राप्ति और कर‍ियर में सफलता की कामना हो, उन्हें दूध से अभिषेक करने के बाद शिवलिंग पर फूलों की माला अर्पित करनी चाहिए। मान्‍यता है क‍ि ऐसा करने से भोलेनाथ अत्‍यंत प्रसन्‍न होते हैं।

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