स्कूल खोलने को लेकर आखिर हाय तौबा क्यों?

आधे अधूरे पाठ्यक्रम के बीच बोर्ड परीक्षा की तैयारी
Dehradun: उत्तराखंड में कोरोनावायरस के मामले बढ़ रहे हैं और पिछले 30 दिनों से मौतों का आंकड़ा भी बढ़ने लगा है। जहां एक तरफ कोरोना के नए वेरिएंट OMICROM को लेकर सतर्कता बरतने के निर्देश जारी किए गए हैं वहीं उत्तराखंड सरकार ने एक बार फिर अजीबोगरीब फैसला लेते हुए दसवीं से बारहवीं तक की कक्षाओं को शुरू करने का फरमान सुना दिया है। अभिभावक इस फैसले से हैरान है क्योंकि जहां स्कूलों में सैनिटेशन तक की व्यवस्था नहीं है वही सामुदायिक दूरी को बनाए रखने का भी कोई उचित प्रबंध अब तक नजर नहीं आया है।
कल राज्य सरकार की ओर से स्कूल की व्यवस्था को लेकर SOP जारी की गई थी जिसमें कक्षा 1 से 9 तक ऑनलाइन कक्षाएं चलाने के निर्देश दिए गए थे, जबकि दसवीं से बारहवीं की कक्षाओं को स्कूलों में चलाने का फैसला लिया गया है। वर्तमान शिक्षा सत्र 2 महीने बाद समाप्त होने जा रहा है और गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी आधे अधूरे पाठ्यक्रम के भरोसे ही बोर्ड की परीक्षाएं पूरी की जानी है। 2 महीनों में कैसे बचा हुआ पाठ्यक्रम पूरा हो पाएगा इसे लेकर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
पूर्व में भी स्कूल खोलने के निर्देश दिए गए थे तो छात्रों की संख्या बेहद कम दर्ज की गई थी। अभी कोरोनावायरस का प्रकोप जारी है और इन परिस्थितियों में राज्य सरकार को स्कूल खोलने के फैसले पर अभिभावकों एवं वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए ही निर्णय लेना चाहिए था।
बहरहाल अभी सबसे बड़ी चुनौती शिक्षा विभाग के आगे बोर्ड परीक्षाओं की है और पाठ्यक्रम अभी आधा अधूरा ही पढ़ाया गया है। इन परिस्थितियों में कैसे बोर्ड की परीक्षाएं आयोजित होंगी और कैसे छात्र अधूरे पाठ्यक्रम के बीच अपनी परीक्षाएं देंगे?

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