60 बनाम 48: आत्माविश्वास कम कोरी बयानबाजी ज्यादा – Bhilangana Express

60 बनाम 48: आत्माविश्वास कम कोरी बयानबाजी ज्यादा

“इक्का-दुक्का” जीतने वाले ही बनेंगे सत्ता के “गेम चेंजर”
बहुमत प्राप्त करने का ठोस कारण ना सरकार और ना विपक्ष के पास
आंकड़ों के हवाई गोलों से एक दूसरे पर दमदार हमले

DEhradun: पूरा उत्तराखंड इस समय दो ही चर्चाओं पर टिका हुआ है अबकी बार 60 पार या 48 से ज्यादा। 60 प्लस का जुमला भारतीय जनता पार्टी का सत्ता में पहुंचने का प्रचंड जादुई बहुमत का आंकड़ा है तो 48 प्लस के आंकड़े से हरदा पलटने को तैयार नहीं है। अब यह तय नहीं है कि दोनों में से कौन अपने बहुमत के आंकड़े पर सटीक बैठता है लेकिन दोनों नेताओं के बयानों में आत्मविश्वास कम और राजनीतिक औपचारिकताएं ज्यादा नजर आ रही है।

असल में अभी चुनाव परिणाम आने में लगभग 2 सप्ताह का समय बचा है और इस बचे हुए समय में अधिक कुछ करने के लिए ना तो सरकार के पास है और ना विपक्ष के पास। ले देकर एक मुद्दा बचा है और वह है सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा प्राप्त करने का माहौल बनाना। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पूरी तरह से कन्फर्म नजर आ रहे हैं कि इस बार कांग्रेस 48 प्लस का आंकड़ा लेकर सरकार बनाने जा रही है। उनके इस तर्क के पीछे हालांकि ऐसा कोई ठोस कारण नजर नहीं आ रहा है जो कांग्रेस को सत्ता तक पूर्ण बहुमत के साथ ले जाने का रास्ता दिखाता हो लेकिन इस बयानबाजी में हरीश रावत बयानबाजी कर भाजपा को परेशानी में डालने का काम तो करने में सफल रहे ही हैं।

हरीश रावत के इस 48 प्लस का जवाब देने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अकेले दम पर मोर्चा संभाले हुए हैं और अडिग है 60 से ज्यादा सीटें जीतने के विश्वास को लेकर। मतदान के बाद से ही दोनों नेताओं के बीच बहुमत बनाने के चमत्कारिक आंकड़े पेश किए जा रहे हैं लेकिन ठोस कारण दोनों के ही पास ही नहीं है कि उनके द्वारा ऐसा क्या चमत्कार उत्तराखंड प्रदेश के लिए किया गया है कि उत्तराखंड की जनता प्रचंड बहुमत के साथ जनादेश देने वाली है? सोचने वाली बात है कि पिछले चुनावों में जबरदस्त मोदी लहर के बावजूद भी भाजपा को 57 विधानसभा सीटें मिली थी और 60 का आंकड़ा तो तब भी पार नहीं हो पाया था, तो इस बार ऐसा क्या चमत्कार है जो मोदी लहर को भी मात देने वाला है।

वहीं दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की कार्यकाल में उनके स्टिंग ऑपरेशन प्रदेश की राजनीति में खासा बवाल मचा चुके हैं,
जिसकी आज उनके कार्यकाल की अवधि पूरी ना करने पर भी पड़ी। कांग्रेस ने उत्तराखंड के किसी भी चुनाव में 40 से ऊपर सीटें प्राप्त नहीं की है, वर्ष 2002 के प्रथम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 36 सीटें ही प्राप्त हुई थी जिसके आधार पर पंडित नारायण दत्त तिवारी की प्रथम निर्वाचित सरकार उत्तराखंड में बनी थी।

मतगणना के बाद से ही जो बयान बाजी भाजपा व कांग्रेस के द्वारा उत्तराखंड में की जा रही है उसका ना तो कोई जनाधार है और राजनीतिक विश्लेषक इन आंकड़ों को लेकर सहमत नजर आ रहे हैं। यह तय है कि दोनों में से जो भी दल सरकार बनाएगा वह सरकार बनाने के लिए जरूरी 36 सीटों के या तो आसपास रहेगा या फिर “इक्का-दुक्का” जीतने वाले एक बार फिर उत्तराखंड की राजनीति में बवंडर पैदा करने वाले हैं। दोनों दिग्गज आंकड़ों को लेकर बड़े-बड़े हवाई गोले जरूर फेंक रहे हैं लेकिन इस बार सरकार बनाने के लिए उन चंद निर्दलीय या दूसरे दलों के नेताओं को अभी से कुछ करना होगा जो ऐन वक्त पर सरकार की बैसाखी बन कर खड़े होने वाले हैं।