बच्चे बच्चे की जुबान पर था ‘मैं हूं विकास दुबे कानपुर वाला”
डीएसपी समेत आठ पुलिसकर्मियों की हुई थी घेर कर हत्या
KANPUR: आज से लगभग 1 साल पूर्व देश में कानपुर के एक गैंगस्टर का जलवा पूरे देश में इस प्रकार फैला की उसने पूरे पुलिस व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया। “मैं हूं विकास दुबे कानपुर वाला” यह जुमला भारत के बच्चे-बच्चे की जुबान पर सुनाई देने लगा तो तो एक बहस छिड़ गई कि आखिर कैसे एक व्यवस्था पर कोई बदमाश भारी पड़ सकता है।
उत्तर प्रदेश पुलिस के इतिहास में 2 जुलाई 2020 की रात एक ना भुलाने वाली रात के रूप में याद की । कानपुर के विभिन्न गांव में क्षेत्र के एक बदमाश विकास दुबे व उसके साथियों को डीएसपी देवेंद्र मिश्रा के नेतृत्व में पुलिस टीम गई थी। यहां पुलिस विभाग से छापे की कार्यवाही की मुखबिरी कर दी गई, जिससे विकास दुबे ने जेसीबी लगाकर पुलिस टीम को घेरा और चारों तरफ से उन पर हमला कर डीएसपी समेत आठ पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया। घटना के बाद विकास दुबे फरार हो गया और पुलिस विकास दुबे को चप्पे-चप्पे पर तलाश में लगी।
अब यह जरूरी हो गया था कि जल्द से जल्द विकास दुबे को सबक सिखाया जाए ताकि भविष्य में कोई पुलिस पर इस प्रकार का दुस्साहस करने का कदम ना उठा सके। विकास दुबे फरार था लेकिन पुलिस का दबाव उस पर इस प्रकार से हावी हो चुका था कि वह अधिक समय तक अपनी पहचान नहीं छुपा पाया और नाटकीय तरीके से खुद को उसने उज्जैन के महाकाल मंदिर से गिरफ्तार करवाया।
गिरफ्तारी के बाद वह चीख चीख कर मीडिया के आगे कहता रहा कि ‘मैं हूं विकास दुबे कानपुर वाला”।
विकास दुबे का यही जुमला उसके मारे जाने तक देश का सबसे चर्चित जुमला बन गया लेकिन गिरफ्तारी के रोज ही पुलिस की गाड़ी पलटने के बाद विकास दुबे पुलिस मुठभेड़ में मारा गया। मुठभेड़ के तरीके पर कई सवाल उठे तो पुलिस का पक्ष लेने वाला भी एक बड़ा वर्ग सामने आया लेकिन मुठभेड़ थी तो निश्चित तौर पर न्यायिक जांच भी होनी ही थी।
विकास दुबे एनकाउंटर प्रकरण के लिए एक आयोग का गठन किया गया जिसमें सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज बीएस चौहान की अध्यक्षता में 3 सदस्य टीम बनाई गई। इनमें न्यायमूर्ति एसके अग्रवाल कपूर डीजीपी केएन गुप्ता शामिल थे।
जांच शुरू हुई टीम बिखरू गांव से लेकर उज्जैन और मुठभेड़ स्थल तक पहुंची लेकिन पुलिस के खिलाफ साक्षी या बयान देने वाला एक भी व्यक्ति ना सामने आया और ना ही आयोग को मिला।
लगभग 9 महीने तक प्रकरण की जांच चली और बाद में आयोग ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट व राज्य सरकार के आगे रख दी। अंततः विकास दुबे को मार गिराने वाली पुलिस क्लीन चिट दे दी गई।