वरिष्ठता नकार कर धामी के चयन से खुश नहीं कुछ नेता
विधायकों का एक बड़ा धड़ा मानता है गलत हुआ फैसला
Dehradun: उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री के तौर पर पुष्कर सिंह धामी का नाम चुनना भाजपा संगठन के लिए एक विवाद बन गया है। असल में कई वरिष्ठ नेताओं को उनकी वरिष्ठता को नकारना नागवार गुजरा है। अभी नए मुख्यमंत्री का शपथ ग्रहण भी नहीं हुआ है और इससे पूर्व जी भारतीय जनता पार्टी के अंदर मनमुटाव पूरी तरह से हावी हो चुकी है। एक तरफ तो यह भी बात उठ रही है कि क्या बिना किसी असंतोष के आज का यह शपथ ग्रहण हो पाएगा?
उत्तराखंड में मुख्यमंत्रियों का बदलना अब एक सामान्य बात हो चुकी है। पिछले 20 वर्षों में इस प्रदेश को 11 मुख्यमंत्री मिल चुके हैं लेकिन इस बार जो विवाद सामने आया है उससे भाजपा में विघटन के भी आसार नजर आने लगे हैं। असल में 2 दिन पूर्व ही तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया था इसके बाद नए मुख्यमंत्री के रूप में सतपाल महाराज और धन सिंह रावत के नाम सबसे प्रमुखता से सामने आए थे, लेकिन पार्टी हाईकमान ने इन सभी वरिष्ठ नामों को किनारे कर खटीमा विधायक पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बना दिया। जिस बात के आसार थे वही सारा घटनाक्रम उनके नाम घोषणा के कुछ घंटों बाद ही सामने आ गया। वरिष्ठ नेताओं को उन्हें नजरअंदाज कर पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश के सबसे ऊंचे पद पर बिठाना अच्छा नहीं लगा। सूत्रों का कहना है कि 30 से अधिक विधायक धामी को मुख्यमंत्री चुने जाने से खुश नहीं है। इधर संभावना तो यह भी जताई जा रही है कि यदि शपथ ग्रहण से पूर्व इस असंतोष को मैनेज करने का प्रयास नहीं किया गया तो भाजपा के लिए एक बार फिर छीछालेदर जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। हालांकि संगठन के बड़े नेताओं का कहना है कि सब कुछ सामान्य है और शपथ ग्रहण बिना किसी विवाद के संपन्न होगा।
मालूम हो कि त्रिवेंद्र सिंह रावत के त्यागपत्र के बाद जब तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाने की बात उठी थी उस वक्त कुछ नेताओं को संतुष्ट करने के लिए उपमुख्यमंत्री पद का भी प्रकरण उठा था उस वक्त पुष्कर सिंह धामी भी उप मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे थे लेकिन बाद में उपमुख्यमंत्री बनाने का निर्णय रद्द कर दिया गया। अब चुकी पुष्कर सिंह धामी पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं को पीछे छोड़ कर मुख्यमंत्री के पद पर बैठने जा रहे हैं तो पार्टी के अंदर अंतरविवाद होना स्वाभाविक ही है, देखना सिर्फ यह है पुष्कर सिंह धामी अब कितने राजनीति कुशल निकलते हैं कि वह अपने वरिष्ठ नेताओं को समझा सके?