राजनीतिक घोषणा पत्र जनता की कसौटी पर फेल – Bhilangana Express

राजनीतिक घोषणा पत्र जनता की कसौटी पर फेल

घोषणा पत्र जारी करना महज एक राजनीतिक कार्यक्रम
मतदाता घोषणा पत्रों पर नहीं करते अधिक विश्वास
घोषणा पत्रों की सार्थकता कम होने पर अब नाम बदलकर किए जा रहे हैं पेश

Dehradun: विधानसभा चुनाव मैं सत्ता तक पहुंचने की चाबी हासिल करने के लिए राजनीतिक दलों ने पूरा जोर दे मारा है। सत्ता तक पहुंचना है तो जनता से कुछ वादे तो करने पर ही पड़ेंगे फिर चाहे वह वादे राज्य गठन के बाद से ही क्यों न करते हुए आ रहे हो? एक बार फिर विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्र जारी किए हैं। हैरानी की बात तो यह है कि राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्रों को खुद ही घोषणा पत्र मानने को तैयार नहीं है और अब इसके लिए नए नए नाम सामने आ रहे हैं।

असल में चुनावों से पूर्व किसी भी पार्टी का घोषणा पत्र जारी होना सिर्फ एक औपचारिकता से अधिक और कुछ नहीं रह गया है। इसमें किए गए वादे अधिकांशतः झूठ ही साबित होते हैं और समय के साथ-साथ मतदाता भी इसे भूल जाता है। गंभीरता से सोचा जाए कि यदि घोषणापत्र के वादे ही अगर पूरे हो जाए तो शायद राज्यों में विकास की गंगा ही बह निकले।

उत्तराखंड राज्य बनने के बाद से ही हर राजनीतिक दल ने अपने घोषणा पत्रों में वही पुराने वाले जुमले दोहराए हैं जो कभी पूरे ही नहीं किए गए। रोजगार, शिक्षा, पलायन, कृषि, सामाजिक सुरक्षा, महिला सशक्तिकरण, किसानों का उद्धार आदि आदि,यह कुछ ऐसे रटे हटाए वादे हैं जिन्हें शब्दों की नई-नई चासनी में घोलकर मतदाता के आगे पेश किया जाता है।

घोषणा पत्रों में युवाओं को रोजगार देने का वादा देख ऐसा लगता है मानो अमुक की सरकार आते ही बेरोजगारी की समस्या ही दूर हो जाएगी। यह अलग बात है कि सत्ता में काबिज होने के साथ ही घोषणा पत्र रद्दी की टोकरी में नजर आता है और सरकार अपनी चाल ही बदल लेती है।

यही कारण है कि राजनीतिक दलों की घोषणा पत्रों पर जनता अधिक विश्वास नहीं करती और ना ही इन्हें गंभीरता से ही लेती है। शायद ही कोई मतदाता घोषणा पत्रों को पूरा पड़ता होगा, मतदाता तो छोड़िए राजनीतिक दलों के लोग भी शायद ही घोषणा पत्रों के बिंदुओं को गंभीरता से देखते होंगे। खैर घोषणा पत्र या फिर यह कहे संकल्प पत्र या फिर कोई और दूसरा संबोधन, चुनावों के दौरान इसको जारी करना जनता को रिझाने मात्र से अधिक और कुछ नहीं है। जनता के लिए भी घोषणापत्र को जारी करना महज एक राजनीतिक कार्यक्रम से अधिक नहीं रह गया है।