सीएम चुनने में इतनी रार, तो कितने दिन चलेगी स्थाई सरकार?

अमित शाह के आवास पर बनेगी सीएम नाम की जादू की पुड़िया
13 जिलों के प्रदेश का मुख्यमंत्री चुनने में निकल गए पसीने
नेता चुनने को लेकर क्या दबाव में है केंद्रीय हाईकमान?

Dehradun: उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का नाम रूस और यूक्रेन की लड़ाई जैसा हो गया जो खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। एक छोटा सा प्रदेश जिसे मात्र 13 जिले हैं और 70 विधानसभा सीटें। जनादेश प्रचंड बहुमत का लेकिन दिल्ली में बैठे आकाश एक मुख्यमंत्री इस प्रदेश का नहीं चुन पा रहे हैं। सरकार बनने की शुरुआत ऐसी है तो आसानी से समझा जा सकता है कि इसके स्थायित्व की क्या स्थिति होगी।

कहा तो यह भी जा रहा है कि जो भी मुख्यमंत्री बनेगा वह कई दावेदारों के कंधों पर पैर रखकर इस कुर्सी तक पहुंचेगा, इन परिस्थितियों में कितने दिन उसकी कुर्सी सुरक्षित रह पाएगी इस पर भी सवाल उठ नेता हैं। पुराना रिकॉर्ड बताता है कि भाजपा का कार्यकाल मुख्यमंत्री बदलने के लिए उत्तराखंड में पहचाना जाता है और आगे भी यही परिपाटी चलती है तो हैरानी नहीं होनी चाहिए।

मुख्यमंत्री के दावेदारों की भेड़ चाल लगातार जारी है और नित्य नए नाम उभर कर सामने आ रहे हैं। 10 दिन बाद भी हाईकमान यह निश्चित नहीं कर पाया है कि उत्तराखंड का मुख्यमंत्री असल में बनेगा कौन? दिक्कत यह है कि इस छोटे से प्रदेश में दावेदारों की फौज इतनी अधिक है कि हाईकमान के लिए भी सिर फोड़ने जैसी जैसी स्थिति पैदा हो चुकी है। निर्वाचित विधायकों की तो छोड़िए, सांसद एवं पार्टी के पदाधिकारी भी खुद को मुख्यमंत्री की दौड़ में बता रहे हैं।

अब लगातार छीछालेदार होने के बाद हाईकमान को भी लगने लगा है कि ऐसे ही चलता रहा तो उत्तराखंड की जनता के आगे कैसी सरकार पेश करेंगे? इसे देखते हुए अमित शाह के घर पर आज बैठक बुलाई गई है जिसमें प्रमुख दावेदारों को भी बुलाया गया है। उम्मीद की जा रही है कि कम से कम इस बैठक में उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री का चेहरा चुन लिया जाएगा और 10 दिन से चली आ रही उठापटक का दौर भी समाप्त होगा। सूत्रों की माने तो पुष्कर सिंह धामी, त्रिवेंद्र सिंह रावत सहित अन्य उत्तराखंडी नेताओं को अमित शाह ने अपनी इस बैठक में बुलाया है लेकिन परिणाम निकलेगा भी या नहीं इसे लेकर भी अब उत्तराखंड की जनता निराश हो चुकी है।

यह बहुत ही अजीब स्थिति है कि छोटे से प्रदेश का मुख्यमंत्री चुनने में दिल्ली हाईकमान को माथापच्ची करनी पड़ रही है। यह स्थिति असल में दावेदारों की बड़ी भारी फौज के कारण पैदा हुई है। अधिकांश लोग उत्तराखंड में अभी भी धामी को ही मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं लेकिन 10 दिन में भी यदि केंद्रीय हाईकमान मुख्यमंत्री के चेहरे का फैसला नहीं कर पाया है तो समझ लेना चाहिए कि मुख्यमंत्री बनने की चाहत का दबाव दिल्ली तक बढ़ चुका है।