राजनीति के खेल; चुनाव हारे, एक बना सीएम तो दूसरा डिप्टी सीएम – Bhilangana Express

राजनीति के खेल; चुनाव हारे, एक बना सीएम तो दूसरा डिप्टी सीएम

उत्तराखंड में धामी तो यूपी में केशव प्रसाद मौर्य पर भरोसा
राजनीति में कुछ भी संभव है। उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड के चुनावों में इस बार काई रोचक मजर देखने को मिले, जिसमें चुनाव हारने के बाद हारे हुए प्रत्याशियों को शीर्ष संवैधानिक पदों पर नवाजा गया है। इनमें उत्तराखंड से पुष्कर सिह धामी तो उत्तर प्रदेश से से केशव प्रसाद मौर्य पर भरोसा जताते हुए हाईकमान ने उच्चस्थ पदों पर आसीन किया है।

पहले बात करें उत्तराखंड की तो यहां खटीमा सीट से चुनाव लड़े पुष्कर सिंह धामी को चुनाव हारना पड़ा। चूंकि भाजपा ने चुनाव से पहले ही पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर दांव खेला था और जनता भी उन्हें एक बार फिर से मुख्यमंत्री देखना चाहती थी, लिहाजा हारने के बावजूद भी उन्हें उत्तराखंड का मुख्यमत्री बनाया गया, जिसका उत्तराखंड की जनता ने भी खुल कर समर्थन किया।

उधर उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता केशव प्रसाद मौर्य भी हारने के बावजूद सत्ता से जुड़ गए हैं वह भी उपमुख्यमंत्री के तौर पर। सिराथू विधानसभा क्षेत्र से चुनाव हारने के बाद भी शीर्ष नेतृत्व ने केशव प्रसाद मौर्य पर विश्वास जताया है। केशव प्रसाद मौर्य के समर्थकों को भी इस सब की उम्मीद नहीं थी, लिहाजा उनका नाम प्रमुखता से सामने आने के बाद समर्थकों ने भी खूब जश्न मनाया।

केशव प्रसाद मौर्य भाजपा में कद्दावर नेता माने जाते हैं सथ ही उन्हे विहिप नेता अशोक सिंहल के भी करीब माना जाता था। वर्ष 2014 के लोक सभा चुनाव में भाजपा ने केशव पर भरोसा करके उन्हें प्रयागराज की फूलपुर संसदीय सीट से प्रत्याशी बनाया और वह पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरे। वर्ष 2017 के विधान चुनाव के बाद जब भाजपा प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई तो केशव प्रसाद प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम बनाया गया। इस दौरान उन्हें सांसद पद से इस्तीफा देना पड़ा।

उत्तराखड एवं उत्तर प्रदेश मे ंयह दोनें ही मामले बेहद चर्चा मंे रहे हैं। हालांकि उत्तराखंड की बात करे तो भाजपा ने यहां पुष्कर सिंह धामी के चेहरे पर चुनाव लड़ा था, जिसके बाद धामी की हार के बावजूद प्रचंड बहुमत मिला था। धामी एवं केशव प्रसाद मौर्य दोनों को ही हार का सामना करना पड़ा, लेकिन हाईकमान के विश्वास में दोनो ही नेता जीतने मे कामयाब रहे हैं। इधर छःमाह के अंदर अब दोनों ही नेताओं को विधायिका का चुनाव जीत कर अपने पद पर बने रहने का रास्ता भी साफ करने की चुनौती है।