विजय से एक कदम दूर रह जाने वाले सूर्यकांत इस बार सीमा पार करने की स्थिति में
दिवंगत कपूर के नाम की सहानुभूति और कैडर वोट धस्माना की राह में एक बड़ी चुनौती
कैंट विधानसभा सीट पर इस बार कांटे की टक्कर, जीत को लेकर एड़ी चोटी का जोर
Dehradun: देहरादून की कैंट विधानसभा सीट पर इस वक्त पूरे प्रदेश की निगाह है, इसका कारण है इस सीट पर भाजपा का लंबे समय से कब्जा होना और वर्तमान विधानसभा चुनाव 2022 में इस सीट को बनाए रखना।
भाजपा के लिए अजय मानी जाती रही है कैंट सीट
पहले बता दें कि देहरादून की कैंट सीट पर भाजपा के दिवंगत नेता हरबंस कपूर 8 बार विजेता रहे हैं और यह सीट उनसे कभी कोई छीन नहीं पाया। चुनावों से कुछ माह पहले हरबंस कपूर की मृत्यु हो गई तो इस सीट को लेकर भाजपा में कई उम्मीदवार सामने आए लेकिन चुनाव समिति ने हरबंस कपूर की पत्नी सविता कपूर को भाजपा के बैनर पर विधानसभा प्रत्याशी बना दिया।
उधर हरबंस कपूर की मृत्यु के बाद कॉन्ग्रेस ने इस सीट को लेकर सेंधमारी शुरू की लेकिन यहां प्रत्याशी के चयन को लेकर कांग्रेस को काफी माथापच्ची करनी पड़ी और अंततः सूर्यकांत धस्माना के नाम पर अंतिम मुहर लगा दी गई।
निश्चित तौर पर कैंट विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबला एकतरफा नहीं कहा जा सकता। जब तक हरबंस कपूर से तब तक भाजपा की है एक निश्चित विजेता सीट थी लेकिन उनके जाने के बाद कहीं ना कहीं भाजपा को इस सीट को बनाए रखना अब अधिक चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है।
हार का मिथक तोड़ने को तैयार सूर्यकांत धस्माना
सूर्यकांत धस्माना देहरादून के लिए कोई नया नाम नहीं है और देहरादून जिले में नगर निगम हो या फिर दूसरी विधानसभा चुनाव हुए हो वह प्रमुखता के साथ चुनाव लड़े हैं हालांकि जीत क्यों अभी तक प्रतीक्षा कर रहे हैं। वर्तमान विधानसभा चुनावों में भी सूर्यकांत धस्माना अटल विश्वास के साथ मैदान में उतरे हैं और कहीं ना कहीं उनका पक्ष भाजपा के मुकाबले क्षेत्र में अधिक मजबूत नजर भी आ रहा है। सूर्यकांत धस्माना को इस बार यह मिथक तोड़ना है कि वह नेता तो मजबूत है देहरादून की राजनीति में एक मजबूत स्तंभ तो है लेकिन जीत के अंतिम सिरे में सफलता उनके हाथ से छिटक जाती है।
इस बार निश्चित तौर पर हवा उनके पक्ष में नजर आ रही है और हरबंस कपूर का ना होना भाजपा के लिए कहीं ना कहीं नुकसानदायक साबित होता हुआ लग रहा है। भाजपा इस उम्मीद में है कि सविता कपूर को उनके पति हरबंस कपूर के नाम पर कैडर वोट के अतिरिक्त सहानुभूति वोट भी पड़ जाएगा। हालांकि यह इतना आसान दिखता नजर नहीं आ रहा है। सूर्यकांत धस्माना के साथ सबसे कमजोर पहलू उनका उत्तराखंड आंदोलन से जुड़ा हुआ मुद्दा है जो कहीं ना कहीं उनका पीछा नहीं छोड़ता। हालांकि चुनाव प्रचार में तमाम उत्तराखंड आंदोलनकारी उनके साथ नजर आ रहे हैं और वह कहीं ना कहीं इस बार जनता को यह समझाने में कामयाब भी हुए हैं कि वह हमेशा देहरादून की जनता के लिए बुनियादी मुद्दों को लेकर संघर्ष करते आए हैं।
अब सिर्फ देखना यह है कि उत्तराखंड की राजनीति के मजबूत स्तंभ रहे दिवंगत हरबंस कपूर के नाम पर पुनः यह सीट भाजपा के खाते में आती है या लंबे समय से जीत की प्रतीक्षा में खड़े सूर्यकांत धस्माना इस बार बाजी मार ले जाते हैं। निश्चित तौर पर मुकाबला बेहद दिलचस्प है और कांटे की टक्कर में जिसके हाथ बाजी लगेगी वह राजनीति की दौड़ में लंबी रेस का घोड़ा भी बनेगा।